गुजरात प्रदेश में गुजराती भाषा को जीवंत रखने की सरकार कर रही प्रयास
पिछले 5 वर्ष में 174 नई विद्यालयों के मंजूरी के लिए हुए आवेदन, 71% अंग्रेजी, 14% गुजराती व 12%हिंदी हैं
5 वर्ष में 50 विद्यालय बंद हुए, जिसमें 80% गुजराती माध्यम के विद्यालय हैं
सूरत। गुजराती भाषा को जीवित रखने के लिए गुजरात सरकार के साथ मातृभाषा वंदना और शिक्षक लाख प्रयास कर रहे हैं, कई कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं लेकिन अंग्रेजी भाषा की दबदबा धीरे-धीरे बढ़ रहा है। जिससे शिक्षा पर अंग्रेजी का बोलबाला है।
पिछले पांच वर्षों में नए स्कूलों के लिए प्राप्त हुए 174 आवेदनों में से 71% अंग्रेजी माध्यम के थे। जबकि गुजराती मीडियम में 14% आवेदन हुआ था। साथ ही हिंदी माध्यम का आवेदन 12% और उड़िया माध्यम का आवेदन 3% रहा। वर्तमान समय में माता-पिता में यह धारणा है कि अंग्रेजी भाषा को ही सम्मान मिलता है। जिससे शहर में गुजराती स्कूलों पर ताला लग रहा है और अंग्रेजी स्कूल शुरू करने के लिए लंबी कतारें देखी जा रही हैं।

इस स्थिति के कारण गुजराती भाषा का गुजरात में पतन होता दिख रहा है। आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बच्चों की शिक्षा के लिए स्थानीय भाषा को महत्व देते नजर आ रहे हैं। फिर जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय से प्राप्त आंकड़े शिक्षा जगत की उल्टी स्थिति बयां कर रहे हैं।
गुजरात में अंग्रेजी मीडियम की स्कूलों का दबदबा
पिछले पांच सालों में अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों का दबदबा बढ़ा है जबकि गुजराती माध्यम के स्कूलों में गिरावट आई है। आज के युग में बच्चे को अंग्रेजी का ज्ञान देना आवश्यक है लेकिन मातृभाषा गुजराती के महत्व को कम करके नहीं आंका जाना चाहिए। पिछले पांच साल में नए स्कूलों के लिए 174 आवेदन आए। जिसमें अंग्रेजी माध्यम के 124 आवेदन हैं। जबकि केवल 25 गुजराती माध्यम के स्कूल हैं। इसके अलावा, हिंदी माध्यम के लिए 20 और उड़िया माध्यम के 5 स्कूलों के लिए आवेदन प्राप्त हुए हैं।
पिछले 5 सालों में 80% गुजराती स्कूल हुए बंद
हैरानी की बात यह है कि पिछले 5 सालों में 50 स्कूल बंद कर दिए गए हैं। जिसमें 80% स्कूल गुजराती माध्यम के थे। हालांकि बंद होने के पीछे मुख्य कारण यह था कि गुजराती माध्यम के स्कूलों में बच्चे नहीं मिल रहे थे यानी छात्र प्रवेश नहीं ले रहे थे। नए शैक्षणिक सत्र के बाद से जीवन भारती स्कूल समेत शहर के पुराने व नामी स्कूलों ने भी अंग्रेजी माध्यम का रुख कर लिया है।