उल्फा पर फिर लगी पांच साल की पाबंदी; म्यांमार बेस, 200 कैडर और हिंसक गतिविधियों का हवाला

गुवाहाटी, 27 मई (हि.स.)। केंद्र सरकार ने यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) को एक बार फिर प्रतिबंधित संगठन घोषित कर दिया है। न्यायाधिकरण ने अपने फैसले में कहा है कि इस संगठन के अभी भी 200 से 250 सशस्त्र कैडर म्यांमार में सक्रिय हैं और यह संगठन भारत-विरोधी गतिविधियों में लिप्त हैं।

गौहाटी हाई कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति माइकल ज़ोथानखुमा की अध्यक्षता वाले न्यायाधिकरण ने 21 मई को यह फैसला सुरक्षित रखा था। सरकार की ओर से पेश दस्तावेज़ों और सबूतों के आधार पर न्यायाधिकरण ने कहा कि उल्फा और इसके सभी गुट, शाखाएं तथा मोर्चा संगठन ‘गैर-कानूनी संघ’ की परिभाषा में आते हैं। यह प्रतिबंध 27 नवंबर, 2024 से प्रभावी रहेगा और पांच वर्षों तक लागू रहेगा।

गृह मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना में कहा गया कि उल्फा अब भी म्यांमार में चार प्रमुख कैंप चलाता है और भारतीय उग्रवादी संगठनों से सहयोग भी करता है। संगठन के पास लगभग 200 हथियार होने का अनुमान है और यह राष्ट्रीय पर्वों पर बम धमाकों और सुरक्षा बलों पर हमलों जैसी हिंसक गतिविधियों में शामिल रहता है।

सुनवाई के दौरान, सरकारी पक्ष ने तर्क दिया कि परेश बरुवा के नेतृत्व में उल्फा ‘संप्रभु असम’ की मांग करता है और इसे सशस्त्र संघर्ष के जरिये हासिल करना चाहता है।

असम सरकार ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि पिछले पांच वर्षों में 56 उल्फा कैडर, 177 समर्थक या ओवरग्राउंड वर्कर गिरफ्तार किए गए हैं, जबकि 63 कैडर ने आत्मसमर्पण किया है। इस दौरान सुरक्षा बलों ने 26 हथियार, 515 राउंड कारतूस, 9 ग्रेनेड और दो आईईडी बरामद किए।

उल्फा के खिलाफ दर्ज 15 मामलों में से तीन में आरोप पत्र दायर किए जा चुके हैं। इन मामलों में जबरन वसूली, हत्या की कोशिश, अवैध हथियार रखना और राष्ट्रविरोधी साजिश जैसे गंभीर आरोप शामिल हैं।

उल्लेखनीय है कि उल्फा को पहली बार 1990 में प्रतिबंधित घोषित किया गया था। तब से अब तक समय-समय पर इस पर प्रतिबंध बढ़ाया जाता रहा है।

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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीप्रकाश