श्रीनगर, 26 मई (हि स.)। पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति (पीएमएस) योजना के तहत करोड़ों रुपये का घोटाला किये जाने के मामले में एसीबी ने मामला दर्ज किया है। इसमें पूर्व जनजातीय मामलों के निदेशक और अन्य को आरोपित किया गया है। इन पर दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करके एसटी उम्मीदवारों और गैर-मान्यता प्राप्त संस्थानों को गैर-मान्यता प्राप्त पाठ्यक्रमों के लिए करोड़ों रुपये जारी करने का आरोप है।
एसीबी के प्रवक्ता ने सोमवार को एक बयान में बताया कि यह मामला पी/एस एसीबी जम्मू में एफआईआर संख्या 09/2025 यू/एस 5(1)(सी) (डी) आर/डब्ल्यू सेक्शन 5(2) ऑफ जेएंडके पीसी एक्ट, एसवीटी। 2006 और सेक्शन 120-बी आरपीसी के तहत दर्ज किया गया है। इसमें एमएस चौधरी, तत्कालीन निदेशक जनजातीय मामले जेएंडके, शानाज अख्तर मलिक, कैटलॉग कंप्यूटर्स, हुमेरा बानू और फिरदौस अहमद, चिराग इंस्टीट्यूट ऑफ आईटी को नामजद किया गया है। इसके अलावा शाम लाल तरगोत्रा, जेकेएस औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान (आईटीआई), जिंदर मेहलू, आरएस पुरा, जाफर हुसैन वानी, एवर ग्रीन इंस्टीट्यूट ऑफ कंप्यूटर टेक्नोलॉजी, पुरुषोत्तम भारद्वाज, ग्लोबल इंस्टीट्यूट ऑफ आईटी, रमनीक कौर, पंकज मेमोरियल चैरिटेबल ट्रस्ट फॉर एजुकेशन एंड रिसर्च, पुनीत महाजन, सुपरटेक (इंडिया) कंप्यूटर एजुकेशन, तालाब तिल्लो और अन्य के खिलाफ भी मामला दर्ज किया गया है।
बयान में कहा गया है कि सत्यापन के दौरान पता चला कि भारत सरकार ने एसटी उम्मीदवारों को उनकी शिक्षा पूरी करने के लिए पोस्ट मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना शुरू की है, जिसमें प्रति छात्र 18,000 रुपये की छात्रवृत्ति और 2300 रुपये रखरखाव भत्ता के रूप में वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। इसमें कहा गया है कि पीएमएस योजना का उद्देश्य पोस्ट मैट्रिकुलेशन या पोस्ट-सेकेंडरी स्तर पर अध्ययन कर रहे एसटी छात्रों को वित्तीय सहायता प्रदान करना था ताकि वे अपनी शिक्षा पूरी कर सकें और मान्यता प्राप्त संस्थान द्वारा छात्रों से ली जाने वाली अनिवार्य फीस की प्रतिपूर्ति की जा सके। जम्मू में स्थित निजी संस्थानों ने दूरदराज के क्षेत्रों के एसटी छात्रों के दस्तावेजों का प्रबंधन किया और उन्हें जनजातीय मामलों के निदेशालय के कार्यालय में जमा किया, लेकिन जनजातीय मामलों के विभाग के अधिकारियों ने संस्थानों की वास्तविकता और संस्थानों ने पाठ्यक्रम सामग्री की जांच किए बिना, यहां तक कि छात्रवृत्ति राशि के अंतिम उपयोग को सुनिश्चित किए बिना, 2014 से 2018 के दौरान करोड़ों रुपये की छात्रवृत्ति शुल्क सीधे इन संस्थानों के बैंक खातों में वितरित कर दिया।
बयान में कहा गया है कि सत्यापन से यह भी पता चलता है कि जिन छात्रों के खिलाफ भुगतान जारी किया गया था, उन्होंने न तो प्रवेश लिया और न ही मुफ्त कंप्यूटर कोर्स में भाग लिया। कुछ छात्रों ने योजना के तहत प्रवेश तो लिया लेकिन कभी भी कंप्यूटर कोर्स में भाग नहीं लिया या आंशिक रूप से भाग लिया। हालांकि पूर्ण शिक्षण शुल्क के रूप में लाभ विभिन्न कंप्यूटर संस्थानों के खातों में जमा किया गया था। इसके अलावा एक संस्थान ने अपनी संख्या बढ़ाने के लिए दूरदराज के क्षेत्रों के एसटी छात्रों के दस्तावेजों का प्रबंधन किया और उनके नाम पर छात्रवृत्ति के फॉर्म भरे।
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हिन्दुस्थान समाचार / बलवान सिंह