आचार्य चाणक्य एक ज्ञानी के साथ-साथ एक अच्छे नीतिकार हैं, उन्होंने मनुष्य जीवन को सुखमय बनाने के लिए कई ऐसी नीतियां बनाई हैं, जिनका पालन करने से वह हर समस्या का सामना कर सकता है। उनकी नीतियां व्यवहारिक हैं और जीवन के हर मोड़ पर उपयोगी हैं। आचार्य चाणक्य ने अपनी एक नीति में ऐसे चार लोगों के बारे में बताया है कि जो आपके सबसे बड़े शत्रु हो सकते हैं। आइए जानते हैं आचार्य चाणक्य ने किन लोगों को सबसे बड़ा दुश्मन बताया है…
1/4ऐसा पिता शत्रु के समान

ऋणकर्ता पिता शत्रुर्माता च व्यभिचारिणी।
भार्या रूपवती शत्रु: पुत्र: शत्रुरपण्डित:।।
आचार्य चाणक्य ने अपनी नीति में कहा है कि कर्ज लेने वाला पिता पुत्र के लिए शत्रु के समान माना गया है। पिता का धर्म अपनी संतान का अच्छा से लालन-पालन करने का है। अगर पिता कर्ज के बोझ से दबा हुआ हो तो वह संतान के लिए यह कष्टदायी होता है। जो पिता कर्ज चुकाने में असमर्थ होता है अपनी संतान पर डाल देता है तो ऐसा पिता शत्रु के समान होता है।
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2/4ऐसा माता शत्रु के समान

अगर माता का व्यवहार सही नहीं है तो वह अपनी संतान के लिए शत्रु के समान हैं। अगर माता संतान का लालन पालन सही से नहीं कर पाती है और उसका अपने पति के अलावा अन्य पुरुष से संबंध भी है तो ऐसी स्त्री ना सिर्फ संतान के लिए बल्कि परिवार के लिए भी शत्रु के समान मानी जाती है। उसकी संतान को समाज में अपमान का सामना करना पड़ता है।
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3/4ऐसा स्त्री शत्रु के समान

स्त्री का अति रूपवती होना भी उसके पति के लिए बड़ी समस्या बन जाती है। अगर पति कमजोर है और उसकी रक्षा करने में असमर्थ होता है तो ऐसी स्त्री उसके लिए शत्रु के समान मानी जाती है। रूपवती स्त्री में अपने रूप को लेकर थोड़ा भी अहंकार आया तो पति का जीवन नरक के समान हो जाता है क्योंकि ऐसी स्त्री हमेशा अपने रूप को लेकर ही चिंतित होती है।
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Milaap
Girl with cancer will not live till 4th birthday, needs help
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4/4ऐसी संतान शत्रु के समान

नीति के अंत में चाणक्य ने कहा है कि मुर्ख संतान भी माता-पिता के लिए शत्रु के समान होता है। यदि संतान निरक्षर और अज्ञानी है तो वह भी अपने पिता के लिए एक शत्रु के ही समान होती है। क्योंकि पढ़ी लिखी संतान अपने मां-बाप का ना सही कम से कम अपना तो भविष्य अच्छा कर लेता है। लेकिन निरक्षर संतान अपने और अपने माता-पिता के लिए केवल एक बोझ के समान होता है।