-दूधातोली से व्यासघाट तक की अध्ययन यात्रा के अनुभव साझा
देहरादून, 15 मई (हि.स.)। नयार नदी के पारिस्थितिकी तंत्र, उसमें आए बदलावों और उनके संभावित समाधानों पर चर्चा के लिए गुरुवार को दून पुस्तकालय में एक विशेष संगोष्ठी आयोजित की गई। कार्यक्रम में नयार नदी स्रोत से व्यासघाट तक की 104 किमी लंबी अध्ययन यात्रा में शामिल सदस्यों ने अपने अनुभव साझा किए।
यह अध्ययन यात्रा ‘पहाड़’ संस्था के संयोजन में 21 से 28 अप्रैल, 2025 तक आयोजित की गई थी। इस अवसर पर वरिष्ठ यायावर लेखक डॉ. अरुण कुकसाल ने बताया कि पौड़ी जनपद में स्थित नयार नदी का उदगम स्थल दूधातोली जलागम क्षेत्र है। दूधातोली को हरा समुद्र या फिर पानी की मीनार, पामीर और जलवायु नियंत्रक भी कहा जाता है। यह जलागम लगभग पौड़ी, चमोली और अल्मोड़ा जनपद का एक संयुक्त क्षेत्र है। इसका उत्तरी हिस्सा चमोली, पूर्वी अल्मोड़ा और दक्षिण-पश्चिम पौड़ी (गढ़वाल) जनपद में शामिल है। वस्तुतः दूधातोली क्षेत्र सामाजिक दृष्टि से राठ बहुल क्षेत्र में आता है।
डॉ. कुकसाल ने कहा कि पूर्वी और पश्चिमी नयार नदी का उद्गम दूधातोली क्षेत्र के मुरलीकोठ चोटी 2900 मीटर ऊंचाई के पनढाल से निकलने वाली जलधाराओं से होता है। दो अलग-अलग दिशाओं पूर्वी व पश्चिमी नयार में यह दो नदियाँ बहती हैं और सतपुली में मिलकर अपने-अपने क्षेत्र से लगभग 100 किमी. की दूरी तय करके सतपुली से 2 किमी. आगे दुनै घाट नामक स्थल पर आपस में मिल कर नयार नदी के नाम से 20 किमी. की यात्रा तय करके व्यासघाट में नयार नदी गंगा में समाहित हो जाती है।
उन्होंने अपनी प्रस्तुति में यात्रा के दृश्य काे वीडियो के माध्यम से भी दिखाए। जयदीप रावत ने नयार नदी के जलागम क्षेत्र की अध्ययन यात्रा से उभरे कई सामाजिक तथ्यों को प्रस्तुत किया। उन्होंने पूर्वी और पश्चिमी नयार नदी के प्रभाव और प्रवाह क्षेत्र के यात्रा मार्गों और उनमें शामिल होने वाली जलधाराओं का प्रमाणिक चिह्नीकरण करने की बात कही। उन्होंने स्लाइड शो के माध्यम से यात्रा अनुभवों के महत्वपूर्ण बिंदुओं को बहुत बारीकी से दर्शकों के सम्मुख रखा।
राठ महाविद्यालय के प्राध्यापक डॉ. वीरेंद्र चंद ने कहा कि दूधातोली क्षेत्र से पांच गैर हिमानी नदियां यथा- पश्चिमी रामगंगा, पूर्वी नयार, पश्चिमी नयार, आटागाड और वीनू जन्म लेती हैं। पश्चिमी रामगंगा उत्तराखण्ड हिमालय की सबसे बड़ी गैर हिमानी नदी है। उन्होंने पूर्वी व पश्चिमी नयार और उसमें मिलने वाली छोटी-छोटी जलधाराओं के जल प्रवाह और उनमें बढ़ते प्रदूषण पर चिंता व्यक्त की और उस ओर ध्यान देने की बात कही। राठ महाविद्यालय, पैठाणी के युवा छात्रों, यश तिवारी, सागर बिष्ट व कुलदीप सिंह ने भी अध्ययन यात्रा के अपने अनुभव श्रोताओं के समक्ष रखे।
पूर्व मुख्य सचिव उत्तराखंड शासन एन एस नपलच्याल ने इस तरह की यात्राओं की जरुरत बताते हुए इसे महत्वपूर्ण बताया। इस दिशा में उन्होंने युवा पीढ़ी को आगे आकर अपने नदियों व जंगल ज़मीन के अध्ययन कर उसके संरक्षण व विकास की दिशा में स्थानीय सत्र पर काम करना चाहिए।
युवा छात्रों ने कहा कि नयार नदी घाटी क्षेत्र के निवासी आज भी अपनी अजीविका जो मूलतः पारम्परिक खेती-बाड़ी और पशुपालन पर आश्रित है। उसे अपनी मेहनत के बल पर जीवित रखे हुए हैं। वक्तताओं ने पूर्वी नयार नदी से सतपूली में 14 सितम्बर, 1951 को आई भीषण बाढ़ के प्रारम्भिक स्थल डिन्यालू जो मरोड़ा गांव के निकट स्थित है उसके तथ्यों का पर भी जानकारी दी गयी।
कार्यक्रम के दौरान शहर के कई समाज सेवी, विचारक, साहित्यकार, लेखक, साहित्य प्रेमी, पुस्तकालय के युवा पाठक सहित, प्रो. कैलाश चंद्र पुरोहित, सुंदर सिंह, आलोक कुमार, अरुण कुमार, मनोज इष्टवाल, कमल भट्ट, रेखा शर्मा, रंजना शर्मा, बिष्ट, अरुण कुमार असफल, आलोक सरीन, एके कुकसाल, कुलभूषण, भारत सिंह रावत आदि उपस्थित रहे।
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हिन्दुस्थान समाचार / Vinod Pokhriyal