ऑर्निथोक्टोनिना’ का कीट नियंत्रण श्रृंखला में महत्वपूर्ण योगदान : डॉ विनोद कुमार चौधरी

ऑर्निथोक्टोनिना’ का कीट नियंत्रण श्रृंखला में महत्वपूर्ण योगदान : डॉ विनोद कुमार चौधरी

अयोध्या, 29 मई (हि.स.)। डॉ राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग को एक लुप्तप्राय मकड़ी की प्रजाति को जितेंद्र कुमार सहायक अध्यापक बेसिक शिक्षा दयाल ज्योति, बीकापुर ने पर्यावरण विज्ञान विभाग को इसके संरक्षण के लिए सौंपा है।

विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ बिजेंद्र सिंह के महत्वपूर्ण निर्देशन में पर्यावरण के संरक्षण के तहत महत्वपूर्ण बिंदुओं पर कार्य करने का विशेष जोर है। इसी के क्रम में पर्यावरण विभाग के अध्यक्ष डॉ विनोद कुमार चौधरी ने बताया कि विभाग को सौंपी गई मकड़ी की यह प्रजाति संकटग्रस्त दुर्लभ प्रजाति की मकड़ी है जो जैव विविधता की कड़ी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस प्रजाति की मकड़ियों के पूरे शरीर पर घने बाल पाए जाते हैं यह मकड़ी किसानों एवं फसलों की हितैषी ऐसी प्रजाति मानी जाती है, जो कीट नियंत्रण की श्रृंखला में महत्वपूर्ण योगदान करती है।

डॉ चौधरी ने बताया कि ऑर्निथोक्टोनिना मकड़ी, जिसे अर्थ टाइगर भी कहा जाता है, यह एक टारेंटुला उपपरिवार है जो मुख्य रूप से दक्षिण पूर्व एशिया के आर्द्र जंगलों सहित विशेष रूप से वियतनाम, थाईलैंड, मलेशिया, सिंगापुर, इंडोनेशिया और फिलिपींस में में पाई जाती है। वर्तमान प्रजाति संकटग्रस्त है। इसके संरक्षण के लिए भी प्रभावी उपाय किए जाने चाहिए। इस पर अध्ययन करने के लिए डॉ एसपी सिंह जूलॉजी लैब में सौंप दिया गया है। जूलॉजी के छात्र भी इस प्रजाति का अध्ययन कर पाएंगे। पेड़ों की अंधाधुंध कटाई और वन संरक्षण की ओर पर्याप्त ध्यान न किए जाने के कारण इस प्रजाति पर संकट खड़ा हुआ है। शहरीकरण और प्राकृतिक आवासों का विनाश उनकी आबादी को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर रहा है।

जलवायु परिवर्तन तापमान और आर्द्रता में परिवर्तन उनके अस्तित्व और व्यवहार को प्रभावित कर रहा है। क्योंकि वे विशिष्ट पर्यावरणीय परिस्थितियों पर अत्यधिक निर्भर हैं।

वैज्ञानिक मकड़ी की प्रजातियों के जहर का अध्ययन कर रहे हैं, जिसमें टारेंटुला भी शामिल हैं।

ऑर्निथोक्टोनिना मकड़ियों को विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है, जिसमें गहरी नम सब्सट्रेट और अच्छी वेंटिलेशन शामिल है। तापमान में उतार-चढ़ाव और आर्द्रता का स्तर उनके अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण है । आदर्श तापमान (21-29 डिग्री सेल्सियस) और आर्द्रता 80% से ऊपर है। उसकी रक्षात्मक प्रकृति और शक्तिशाली जहर उसे संरक्षण प्रदान करती है परंतु यह जहर मनुष्यों की लिए हानिकारक नहीं है। इस जहर के मामूली लक्षण मनुष्यों पर होते हैं, जैसे शरीर में चक्के बनना, लाल होना खुजली होना आदि मामूली लक्षण है।

हिन्दुस्थान समाचार / पवन पाण्डेय

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