मप्रः स्टेट बार कौंसिल के कार्यकाल बढ़ाने के प्रस्ताव पर हाईकोर्ट ने लगाई रोक

मप्रः स्टेट बार कौंसिल के कार्यकाल बढ़ाने के प्रस्ताव पर हाईकोर्ट ने लगाई रोक

जबलपुर, 24 अप्रैल (हि.स.)। मप्र उच्च न्यायालय ने गुरुवार को एमपी स्टेट बार कौंसिल द्वारा पारित एक विवादास्पद प्रस्ताव पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी। कोविड-19 के प्रभाव को आधार बनाकर यह प्रस्ताव परिषद् के कार्यकाल को दो वर्षों तक बढ़ाने का था,जिसे उस समाय पारित किया गया था। अदालत ने इस प्रस्ताव पर एमपी स्टेट बार कौंसिल से स्पष्ट करने को कहा है कि उसने किस अधिकार से यह निर्णय लिया, जबकि कानून इसके बिल्कुल विपरीत है।

याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता दीपक पंजवानी ने न्यायालय के समक्ष अधिवक्ता अधिनियम, 1961 की धारा 8 का विस्तारपूर्वक उल्लेख करते हुए स्पष्ट किया कि किसी भी एमपी स्टेट बार कौंसिल का कार्यकाल अधिकतम 5 वर्षों का होता है। यह पांच वर्ष की अवधि उस तारीख से गिनी जाती है जब परिषद् के चुनाव की अधिसूचना प्रकाशित होती है। यदि किसी कारणवश समय पर चुनाव नहीं हो पाते, तो केवल भारतीय विधि परिषद् के पास ही यह अधिकार होता है कि वह वैध कारणों के आधार पर अधिकतम 6 महीने का विस्तार प्रदान कर सके। एमपी स्टेट बार कौंसिल के पास यह अधिकार नहीं है कि वह स्वयं ही अपने कार्यकाल को बढ़ा ले, यह संविधान और अधिनियम दोनों के विरुद्ध है।

चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस विवेक जैन की डिविजनल बेंच ने गुरुवार को इस पूरे प्रकरण को गंभीरता से लेते हुए एमपी स्टेट बार कौंसिल के प्रस्ताव पर अंतरिम स्थगन आदेश पारित कर दिया। अदालत ने स्पष्ट रूप से एमपी स्टेट बार कौंसिल से जवाब मांगा है कि उसने किस आधार पर यह निर्णय लिया, जबकि कानूनन ऐसा कोई अधिकार उसे प्राप्त नहीं है। न्यायालय का यह आदेश न केवल तत्काल प्रभावी हुआ, बल्कि इसने अन्य राज्यों की स्टेट बार कौंसिल के लिए भी यह स्पष्ट संदेश दिया कि लोकतंत्र के नाम पर मनमानी बर्दाश्त नहीं की जाएगी। याचिकाकर्ताओं ने अदालत को बताया कि यदि इस प्रकार परिषदें मनमाने ढंग से कार्यकाल बढ़ाने लगेंगी, तो वह दिन दूर नहीं जब अधिवक्ता संगठनों का उद्देश्य ही बदल जाएगा और लोकतांत्रिक प्रणाली पर प्रश्नचिह्न लग जाएगा।

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हिन्दुस्थान समाचार / विलोक पाठक