
सूरत/अहमदाबाद- गुजरात में झींगा क्रांति के अग्रणी डॉ मनोज शर्मा ने झींगा उत्पादन को लेकर केन्द्र सरकार की ओर से किए जा रहे प्रयासों की सराहना की है। उन्होंने बताया कि झींगा उत्पादन और व्यापार में जो दिक्कतें आ रही थी, केन्द्र सरकार ने उसे दूर करने करने की कोशिश की है। साथ ही कोस्टल एक्वाकल्चर अथॉरिटी (सीएए) के जरिए जो कुछ विसंगतियां थी उसे भी दूर करने का रोडमैप तैयार किया है। केन्द्र सरकार की ओर से लाए गए कोस्टल एक्वाकल्चर अथॉरिटी बिल संशोधन निश्चित रूप से एक्वाकल्चर में व्यापार करने में आसानी लाएगा और भारत निश्चित रूप से एक्वाकल्चर व्यवसाय में बड़ा विकास करेगा। साथ ही झींगा किसानों को इससे अधिक से अधिक लाभ होगा।

डॉ शर्मा ने बताया कि कोस्टल एक्वाकल्चर अथॉरिटी (सीएए) ने झींगा उद्योग को पटरी पर लाने में काफी मदद की है। हालांकि, कुछ प्रक्रियाओं को सरल बनाने की अभी जरूरत महसूस की जा रही है जिसमें पंजीकरण प्रक्रिया को आसान बनाना शामिल है। इसके अलावा जिला भूमि समिति की भूमि आवंटन प्रक्रिया को भी सरल करने की जरूरत है जिससे झींगा फार्म विकसित करने के इच्छुक व्यक्तियों के लिए यह प्रक्रिया उतनी ही आसान हो सके।

ऑनलाइन हो फार्म पंजीकरण की प्रक्रिया
डॉ शर्मा ने कहा कि हमारे देश में डिजिटलीकरण में सुधार के साथ, पंजीकरण और नवीनीकरण औपचारिकताओं जैसे फार्म पंजीकरण और फार्म लाइसेंस को यथासंभव ऑनलाइन होने लगे हैं। इस वजह से सीएए को खेतों और हैचरी की विशेष आवश्यकता और बीएमसी की स्थापना पर भी ध्यान देना चाहिए और इस तरह की सभी चीजों को व्यापार करने में आसानी के लिए अधिनियम में शामिल किया जाना चाहिए।
तटीय जलीय कृषि अधिनियम 2005 के कुछ प्रावधानों में संशोधन जरूरी
तटीय पर्यावरण की रक्षा करते हुए 2005 में तटीय जलीय कृषि अधिनियम के लागू होने के बाद इस क्षेत्र का व्यवस्थित तरीके से विकास हुआ है। हालाँकि, अधिनियम में कुछ खामियाँ हैं जिन्हें दूर करने की आवश्यकता है। सरकार को तटीय जलीय कृषि अधिनियम 2005 के कुछ प्रावधानों में संशोधन करना चाहिए ताकि विकेंद्रीकरण के माध्यम से तेजी से पंजीकरण सुनिश्चित किया जा सके, जलीय कृषि में एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग को नियंत्रित किया जा सके और अधिनियम में विसंगतियों को दूर किया जा सके। सीएए ने भारत सरकार को संशोधन विधेयक का प्रस्ताव दिया है। विधेयक में संशोधन से इन मुद्दों का समाधान होना चाहिए और एक्वाकल्चर क्षेत्र को पर्यावरण के अनुकूल तरीके से नई ऊंचाइयों पर ले जाना चाहिए।