Religionसूरत

आत्मकल्याण के लिए करें पराक्रम और पुरुषार्थ : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

सरदार नगरी बारडोली में तेरापंथ के सरताज का मंगल प्रवास प्राप्त कर धन्य हुए श्रद्धालु

-सरदार नगरी बारडोली में तेरापंथ के सरताज का मंगल प्रवास प्राप्त कर धन्य हुए श्रद्धालु

-हर्षित बारडोलीवासियों ने दी अपने श्रद्धाभावों की अभिव्यक्ति

सूरत। बारडोली सत्याग्रह के बाद भारत के प्रथम गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल को ‘सरदार’ की उपाधि प्रदान की गई। ऐसी ऐतिहासिक नगरी के श्रद्धालुओं पर कृपा करते हुए जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने एक दिवसीय प्रवास के स्थान पर दो रात्रि का प्रवास प्रदान कर निहाल कर दिया प्रवास के दूसरे दिन प्रातः से ही बारडोलीवासी अपने आराध्य की मंगल सन्निधि में उपस्थित हो गए। अपने आराध्य के दर्शन, सेवा, उपासना और आशीर्वाद का लाभ प्राप्त किया।

तेरापंथ भवन से कुछ ही दूरी पर बने प्रवचन पण्डाल में उपस्थित बारडोली की जनता को साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी व साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने उद्बोधित किया। तदुपरान्त युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित श्रद्धालुओं को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि जैन धर्म में 32 आगम प्रमाण के रूप में विद्यमान हैं। उनमें चार प्रमुख आगमों में एक उत्तरज्झयणाणि। इसमें तात्त्विक ज्ञान की बातें बताई गई हैं। इसके दसवें अध्याय मंे बहुत ही ज्ञान की बात बताई गई है। जहां तक मुझे याद है परम पूज्य गुरुदेव तुलसी उस दसवें अध्याय का पश्चिम रात्रि में खड़े-खड़े स्वाध्याय कर लेते थे। इस अध्ययन में भगवान महावीर ने गौतम के नाम संदेश देते हुए बताया है कि समय मात्र भी प्रमाद में नहीं गंवाना चाहिए।

वृक्ष का पका हुआ पत्ता जिस प्रकार कभी भी गिर जाता है, उसी प्रकार इस अनित्य जीवन कभी भी समाप्त हो सकता है। इसलिए आदमी को क्षण भर भी प्रमाद में नहीं जाना चाहिए। दुनिया में नित्यता भी है तो अनित्यता भी है। जैन दर्शन नित्यानित्यवाद को मानने वाला दर्शन है। एक ही पदार्थ नित्य भी है और अनित्य भी। दिया और आकाश का उदाहरण देते हुए बताया गया कि आकाश में नित्यता की प्रधानता है, किन्तु उसमें अनित्यता सन्निहित है। उसी प्रकार दिये में अनित्यता प्रधान है, किन्तु उसमें नित्यता सन्निहित है। इसी प्रकार आदमी का जीवन भी अनित्य है। इसलिए आदमी को पूर्ण जागरूकता के साथ अपने समय का सदुपयोग करने का प्रयास करना चाहिए। शरीर नश्वर है, अशाश्वत है, आत्मा स्थाई और शाश्वत है। आदमी अपने शरीर को चलाने के लिए कितना कुछ करता है, स्नान, भोजन, वस्त्र, मकान, सुरक्षा, औषधि आदि-आदि की कितनी व्यवस्था करता है, जबकि शरीर अनित्य है तो आदमी अपने भीतर स्थित नित्य आत्मा के लिए कुछ करने का प्रयास करे। आदमी को अपनी आत्मा के कल्याण के पराक्रम और पुरुषार्थ करने का प्रयास करना चाहिए।

आचार्यश्री ने बारडोली आगमन के संदर्भ में कहा कि बारडोली में आना हुआ है। यहां साध्वीजी का चतुर्मास भी घोषित किया हुआ है। यहां की जनता इस चतुर्मास का लाभ उठाए। तेरापंथ भवन में धार्मिक-आध्यात्मिक गतिविधियां चलती रहें। बारडोली की जैन-अजैन सभी जनता में सद्भावना, नैतिकता और नशामुक्ति की चेतना पुष्ट रहे।

अपने आराध्य की अभिवंदना में बारडोली तेरापंथी सभा के अध्यक्ष श्री राजेन्द्र बाफना, वरिष्ठ श्रावक श्री गौतम बाफना, श्री सुजानसिंह मेहता, अभातेयुप के उपाध्यक्ष श्री जयेश बाफना, तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष श्री साहिल बाफना, वर्धमान स्थानकवासी श्रमण संघ के श्री गौतमकुमार पुगलिया, अणुव्रत समिति की अध्यक्ष श्रीमती पायल चोरड़िया, तेरापंथ महिला मण्डल की अध्यक्ष श्रीमती संगीतादेवी सरणोत, तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम के अध्यक्ष श्री सुशील सरणोत व श्री गंगाराम गुर्जर ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी। तेरापंथ युवक परिषद, तेरापंथ महिला मण्डल, तेरापंथ किशोर मण्डल व तेरापंथ कन्या मण्डल ने संयुक्त रूप से स्वागत गीत का संगान किया। तेरापंथ कन्या मण्डल, ज्ञानशाला व तेरापंथ किशोर मण्डल ने अपनी-अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। आचार्यश्री ने सभी को मंगल आशीर्वाद व पाथेय प्रदान किया। साथ ही उनके धारणाओं के अनुसार उन्हें त्याग और संकल्प भी कराया।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button