जानिए अतीक अहमद के जुर्म की पूरी कहानी, कैसे तांगे वाले का बेटा बना यूपी का सबसे बड़ा माफिया
कभी शेर कहे जाने वाले अतीक अहमद का ऐसे हुआ अंत

लखनऊ: अतीक अहमद का जन्म 10 अगस्त 1962 में हुआ था। और 15 अप्रैल 2023 को उसी अतीक अहमद का अंत हो गया। यानी करीब 60 साल की उम्र में उसने दुनिया को अलविदा कर दिया। अतीक अहमद का परिवार भी बेहद गरीब था कभी। साल 1979 का दौर था। उस समय इलाहाबाद के चकिया मोहल्ले में फिरोज अहमद नाम के एक शख्स हुआ करते थे। वो तांगा चलाकर अपने परिवार का खर्चा चलाते थे। इसी फिरोज का बेटा पढ़ने में कम, बदमाशी पर ज्यादा फोकस करता था. इसलिए इसका परिणाम भी 10वीं की परीक्षा में सामने आ गया।10वी का रिजल्ट आया और फिरोज का बेटा फेल हो गया। अब वो इस परीक्षा में तो फेल हो गया लेकिन जल्द ही अमीर और बाहुबली बनने का सपने देखने लगा।

उम्र भले ही उसकी 17 साल थी. यानी वो अभी बालिग भी नहीं हुआ था। वोट भले नहीं दे सकता था लेकिन जान लेने की नियत बन गई थी. साल बीतता गया और इधर इस नाबालिग से बालिग हुए लड़के का क्राइम ग्राफ भी बढ़ता गया। ये अब अतीक अहमद के नाम से कुख्यात है. कई महीनों से गुजरात की साबरमती जेल में बंद है। हत्या, अपहरण, मर्डर के प्रयास समेत दर्जनों मामले इस पर दर्ज हैं। अब इसके नाम की चर्चा इलाहाबाद से प्रयागराज बने शहर में उमेश पाल की हत्याकांड में हो रही है। पुलिस ताबड़तोड़ एनकाउंटर कर रही है। लेकिन इसका मास्टरमाइंड खुद जेल में बंद है। उस मास्टरमाइंड अतीक अहमद की आखिर क्या है पूरी कहानी। आइए जानते हैं…

जिस चांद बाबा का था खौफ उसी की हत्या कर अतीक बना बादशाह
अतीक अहमद कैसे बना बाहुबली डॉन, कैसे अपराध से राजनीति की दुनिया में आया इसे पूरा समझने के लिए चलते हैं अब से करीब साल 1987 के आसपास की बात है। इलाहाबाद शहर में चांद बाबा का दौर था। उसके नाम से लोगों के मन में खौफ पैदा हो जाता था। क्या नेता और क्या कारोबारी. सभी चांद बाबा के नाम से ही खौफ खाते थे. आलम ये था कि पुलिस और नेता इस चांद बाबा को मारना तो चाहते थे लेकिन हिम्मत किसी में नहीं थी। अब दो साल का वक्त गुजरा और अतीक अहमद का दबदबा बढ़ने लगा. लेकिन कोई बड़ी पहचान नहीं थी।
अब पहचान बड़ी करनी थी तो धमाका भी बड़ा होना चाहिए था। सो अतीक ने वही किया. इलाहाबाद के सबसे बड़े डॉन यानी बाहुबली का पता लगाया. तब पता चला 1989 में चांद बाबा का बड़ा नाम है। फिर उसी चांद बाबा की अतीक अहमद ने सनसनीखेज तरीके से हत्या कर डाली. अब जिस चांद बाबा से पुलिस और बड़े बड़े नेता खौफ खाते थे उसी का बेखौफ अंदाज में मर्डर कर दिया गया। कत्ल करने वाला अतीक अहमद अब खुद सबसे बड़ा बाहुबली बन गया। इसके बाद अतीक ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. साल बदलते गए और बड़े बड़े नाम उसकी क्राइम लिस्ट में जुड़ते गए. साल 2002 में नस्सन की हत्या. साल 2004 में देश के जाने माने बीजेपी नेता और मंत्री रह चुके मुरली मनोहर जोशी के सबसे करीबी नेता अशरफ की हत्या। फिर 2005 में नए नए विधायक बने राजूपाल की हत्या कराकर अतीक अहमद यूपी की सियासत से लेकर जरायम की दुनिया में छा गया।

जुर्म से सियासत की दुनिया का सफर
जुर्म से सियासत की दुनिया का सफरजुर्म की दुनिया से सियासत में कदम रखने की भी अतीक अहमद की बड़ी कहानी है।1989 में चांद बाबा की हत्या से जब पुलिस और बड़े बड़े नेता में खौफ पैदा हो गया तो आम जनता क्या चीज थी. अब अतीक अहमद का खौफ लोगों के जेहन में उतर आया. पर पुलिस भी अतीक के पीछे पड़ गई। लेकिन अतीक तो अतीक था। वो कहां पीछे रहने वाला था. अब एक कदम और आगे बढ़कर वो सियासत की दहलीज पर पहुंचने में जुट गया।
लेकिन वो सियासत के गलियारों में घूमने की जगह सीधे मंजिल पर चढ़ने की चाहत रखने वालों में था. इसलिए साल 1989 में ही उसने राजनीति में जोरदार एंट्री करता है। इलाहाबाद की पश्चिमी सीट से विधायकी का चुनाव लड़ता है। वो भी निर्दलीय. क्योंकि वो जानता था कि उसे किसी पार्टी की जरूरत नहीं। मेरे नाम का सिक्का अब चल चुका है। बस इंतजार उस वक्त का है जब ऐलान हो हमारी जीत का। और वो दिन भी आ गया। जब अतीक अहमद की जीत पर मुहर लगी। बाकायदा चुनाव अधिकारी ने ऐलान किया। अतीक अहमद भारी अंतर से चुनाव जीते। फिर जिले के डीएम ने शपथ दिलाई. अब कल तक गैंगस्टर। मर्डर केस में पुलिस के लिए नाक में दम करने वाला अतीक अब विधायक बन चुका था। इस जीत के बाद अपराधी का राजनीतिकरण तेजी से हुआ। एक राजनीति पार्टी ने अतीक का जोरदार स्वागत किया. अतीब ने अब समाजवादी पार्टी का दामन पकड़ लिया। फिर अपना दल में आ गया। अतीक लगातार 5 बार विधायकी का चुनाव जीता। अब कद बढ़ गया।इसलिए विधायकी छोड़ संसद में जाने का फैसला किया फूलपुर संसदीय सीट से चुनाव लड़ा। और जीता भी।

राजनीति के सफर में एक बड़ा मोड़ तब आया जब सांसद बनने के बाद विधायकी वाली सीट खाली हुई. वो साल था 2004। इसी साल सांसद बनने के बाद अतीक अहमद की विधायक वाली सीट खाली हुई. उस पर चुनाव होने था. अतीक को यकीन था कि उसकी छोड़ी हुई सीट पर उसका भाई ही जीतेगा. मुकाबला राजू पाल से था। बसपा से चुनाव लड़ रहे राजू पाल ने आखिर में बाजी मार ली। इस सीट पर राजू पाल जैसे नए नवेले नेता की जीत ने अतीक अहमद को अंदर से हिला दिया. उसने उस राजू पाल को जड़ से ही खत्म करने की ठान ली। फिर वो तारीख आई 25 जनवरी 2005। राजू पाल की दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी गई. इस हत्याकांड में देवी पाल और संदीप यादव की भी मौत हो गई. इस हत्याकांड में सीधे तौर पर उस समय के सांसद अतीक अहमद और उनके भाई अशरफ का नाम सामने आया। अब अतीक अहमद का जुर्म की दुनिया में नाम और बढ़ गया. क्योंकि उसका मुकाबला करने की हिम्मत अब कोई नहीं कर सकता था। यहां तक की जज भी हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे।

जब 10 जज अतीक की जमानत पर फैसला देने से खुद ही कांप गए थे
ये वाकया है साल 2012 का। उस समय तक अतीक अहमद जेल में बंद था. चुनाव लड़ने के लिए उसने इलाहाबाद हाई कोर्ट में जमानत के लिए अर्जी दी। लेकिन उसका खौफ ऐसा था कि हाईकोर्ट के एक या दो नहीं बल्कि कुल 10 जज फैसला लेने से ही डर गए. इन 10 जजों ने केस की सुनवाई से ही खुद को अलग कर लिया. अब आगे भी कुछ कम खौफ नहीं था। 11वें जज ने सुनवाई तो की. लेकिन फैसला अतीक अहमद के पक्ष में ही दिया. यानी अतीक अहमद को जमानत मिल गई. अब जेल से बाहर आकर अतीक अहमद ने चुनाव तो लड़ा लेकिन उसका दबदबा अब पहले जैसा नहीं रहा था. वो चुनाव हार गया. और हराने वाला कोई और नहीं वही राजू पाल की पत्नी पूजा पाल थी। जिसकी 2005 में हत्या कराने के जुर्म में अतीक अहमद जेल में बंद था।
इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में फिर से अतीक अहमद चुनाव लड़ा। लेकिन इस बार इलाहाबाद से नहीं बल्कि श्रावस्ती से। पार्टी थी समाजवादी पार्टी, लेकिन हार का ही सामना करना पड़ा। उस समय बीजेपी के नेता ददन मिश्रा ने चुनाव जीत लिया था। इस तरह बाहुबली अतीक अहमद का कद लगातार गिरता गया. लेकिन एक बार फिर से अतीक अहमद यूपी की सियासत और अपराध दोनों की दुनिया में चर्चा में आ गया था। लेकिन आज 15 अप्रैल को अतीक का अंत हो गया।