वर्ल्ड थैलेसीमिया डे : थैलेसीमिया उन्मूलन में श्रेष्ठ कार्य कर गुजरात बना रोल मॉडल
रक्तदान में अग्रणी गुजरात में विभिन्न संस्थाओं के सेवा भाव से बीमारी पर नियंत्रण की कोशिश

गुजरात। 8 मई को विश्व थैलेसीमिया डे मनाया जाता है। थैलेसीमिया एक असाध्य और वंशानुगत रक्त दोष संबंधी बीमारी है। यह शरीर में हिमोग्लोबिन के निर्माण पर सीधा असर डालता है। जन-जागरूता के जरिए इस भयावह रोग को नियंत्रित किया जा सकता है। इस रोग के प्रति लोगों में जागरूकता आए और जानकारी प्राप्त हो इसलिए हर साल 8 मई को विश्व थैलेसीमिया दिवस मनाया जाता है। कोई भी माता-पिता अपनी संतान को रक्त के बोतल में फंसा नहीं देखना चाहते, लेकिन वंशानुगत अज्ञानता के कारण कई बच्चे जन्म से ही थैलेसीमिया रोग से पीड़ित होते हैं।

गुजरात में थैलेसीमिया बीमारी को जड़-मूल से नष्ट करने के लिए गुजरात सरकार पिछले 15 साल से श्रेष्ठ कार्य कर रही है। इस क्षेत्र में गुजरात ने कई नवतर पहल और व्यवस्थित आयोजन कर अन्य राज्यों के लिए रोल मॉडल बना है। राज्य सरकार ने सभी सरकारी अस्पतालों में गर्भवती महिलाओं का थैलेसीमिया जांच शुरू कराई है। अब तक करीब 7 लाख गर्भवती महिलाओं का थैलेसीमिया की जांच कराई गई है। इस प्रक्रिया से अब तक 500 गर्भस्थ थैलेसीमिया ग्रस्त बच्चों का जन्म होने से रोका जा सका है। गुजरात सरकार ने थैलेसीमिया निवारण के लिए कई विशेष पहल भी की है। इसमें एक पहल है 3 स्तर पर थैलेसीमिया स्क्रीनिंग।

केन्द्र सरकार के नेशनल हेल्थ मिशन और विविध सेवाभावी संस्थाओं की मदद से राज्य सरकार ने यूनिवर्सिटी स्तर पर ही विद्यार्थियों की थैलेसीमिया स्क्रीनिंग करना शुरू किया है। गुजरात के कई समाजों में थैलेसीमिया बीमारी पाए जाने को लेकर भी सरकार सतर्क है। सरकार ने कम्युनिटी स्क्रीनिंग योजना लागू की है। इसके जरिए समुदायों और समाजों को भी जागरूक करने का प्रयास किया जाता है। गुजरात में हर साल 2 से 3 लाख लोगों की थैलेसीमिया जांच कराई जाती है। अब तक कुल 40 लाख से अधिक लोगों की थैलेसीमिया जांच कराई जा चुकी है। गुजरात सरकार के साथ रेड क्रॉस सोसायटी, थैलेसीमिया जागृति फाउंडेशन और थैलेसीमिया गुजरात जैसी कई संस्थाएं इस महामारी के उन्मूलन के लिए कार्य कर रही हैं।

इसके अलावा थैलेसीमियाग्रस्त बच्चों को वार्षिक 15 से 60 बोतल रक्त की जरूरत होती है। इसके साथ ही बच्चों को श्रेष्ठ और शुद्ध रक्त पर्याप्त मात्रा में मिलन भी जरूरी है। इसके लिए रक्तदान को बढ़ावा देना जरूरी है। गुजरात सरकार विभिन्न संस्थाओं के सहयोग से समग्र रसज्य में रक्तदान का महाअभियान चलाती है। गुजरात देश भर में रक्तदान में अग्रणी राज्य है।
यह है थैलेसीमिया बीमारी
थैलेसीमिया एक आनुवांशिक बीमारी है। इस बीमारी में शरीर पर्याप्त मात्रा में रक्त बनाने में विफल हो जाता है। सामान्य रूप से हमारे शरीर के रक्त कण में हीमोग्लोबिन नामक एक प्रोटीन होता है, जो कि मानव शरीर के सभी अंगों तक ऑक्सीजन पहुंचाने का काम करता है। हम जो भोजन ग्रहण करते हैं, उसमें लौह तत्व होता है। हड्डी के बीच अस्थिमज्जा इस लौह तत्व को हीमोग्लोबिन में रूपान्तिरत करने का काम करता है। थैलेसीमियाग्रस्त व्यक्ति के अस्थिमज्जा से लौहतत्व का हीमोग्लोबिन में रूपान्तरण नहीं हो पाता है। इसके कारण शरीर के अन्य अवयवों का पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन नहीं मिल पाता है। इससे शरीर के अवयवों की कार्यक्षमता घटती है। थैलेसीमियाग्रस्त व्यक्ति के शरीर के अवयवों के कमजोर होने से कई तरह की बीमारी शरीर को ग्रस्त कर लेती है।
थैलेसीमिया के प्रकार
थैलेसीमिया जागृति फाउंडेशन के अनुसार थैलेसीमिया सामान्य रूप से दो प्रकार का होता है, थैलेसीमिया माइनर और थैलेसीमिया मेजर। माता-पिता में से यदि किसी एक में क्रोमोजोम में खामी होती है तो संतान में माइनर थैलेसीमिया हो सकता है। यदि माता-पिता दोनों में गुणसूत्रों (क्रोमोजोम) में खामी हो तो थेलेसीमिया मेजर हो सकता है। थैलेसीमिया माइनर को थैलेसीमिया कैरियर अथवा थैलेसीमिया वाहक भी कहा जाता है। थैलेसीमिया माइनर में गुणसूत्रों में दोष या असामान्यता होती है, लेकिन चूंकि कोई विकार नहीं होता है, वे आमतौर पर स्वस्थ और लक्षण-मुक्त होते हैं। यानी बाहर से स्वस्थ दिखने वाले किसी भी व्यक्ति को थैलेसीमिया माइनर हो सकता है। भारत में लगभग 4 से 5 करोड़ लोग थैलेसीमिया वाहक हैं, और 10 में से 8 लोगों को यह भी पता नहीं है कि वे थैलेसीमिया वाहक हैं।
थैलेसीमिया माइनर कोई बीमारी नहीं बल्कि गुणसूत्र (क्रोमोसोमल) असामान्यता है, जबकि थैलेसीमिया मेजर एक घातक बीमारी है। थैलेसीमिया मेजर से पीड़ित व्यक्ति एनीमिया जैसी कई गंभीर समस्याओं से ग्रसित हो जाता है। यदि पति और पत्नी दोनों को थैलेसीमिया माइनर है, तो उनके बच्चे को थैलेसीमिया मेजर होने की संभावना 25 प्रतिशत होती है। इसके अलावा अगर पति-पत्नी में से किसी एक को थैलेसीमिया मेजर है तो भी बच्चे के थैलेसीमिया मेजर होने की संभावना बढ़ जाती है। भारत में हर साल लगभग 10,000 बच्चे थैलेसीमिया मेजर के साथ पैदा होते हैं।

इंडियन रेडक्रॉस सोसाइटी की गुजरात शाखा की हीमोग्लोबिनोपैथी समिति के अध्यक्ष डॉ. अनिल खत्री कहते हैं, अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण के अलावा थैलेसीमिया मेजर का कोई स्थायी इलाज नहीं है। थैलेसीमिया को जड़ से खत्म करने के लिए शादी या गर्भधारण से पहले सभी को थैलेसीमिया माइनर की जांच करानी चाहिए। माइनर को माइनर से शादी नहीं करनी चाहिए। अगर अनजाने में भी शादी हो जाती है तो गर्भ में पल रहे बच्चे की जांच करानी चाहिए। यदि शिशु अधिक उम्र का है तो कानूनी गर्भपात अनिवार्य है।