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Gujarat: 11 जिलों में 25 स्थानों पर रोपे जाएंगे मैन्ग्रोव के पौधे

विश्व पर्यावरण दिवस पर चलेगा देश भर में अभियान

-पीएम मोदी के मिष्टी प्रोजेक्ट के तहत समुद्र किनारे की जमीन का संरक्षण
राजकोट/अहमदाबाद। विश्व पर्यावरण दिवस (World Environment Day) के उपलक्ष पर 5 जून को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मिष्टी (MISHTI Scheme) (मैन्ग्रोव इनिशिएटिव फॉर शोरलाइन हेबिटेट एंड टेन्जीबल इन्कम) कार्यक्रम के तहत समुद्री किनारे वाले राज्यों व केन्द्र शासित प्रदेशों के कम से कम 75 स्थलों पर मैन्ग्रोव (mangrove) प्लांटेशन/पुन: संग्रह अभियान चलाया जाएगा। गुजरात (Gujarat) के 11 जिलों अहमदाबाद, आणंद, कच्छ, जामनगर, देवभूमि द्वारका, नवसारी, भरुच, भावनगर, मोरबी, वलसाड और सूरत (Surat) में मिष्टी कार्यक्रम के तहत मैन्ग्रोव के पौधे रोपे जाएंगे।

समुद्री किनारे के प्रदेशों में पर्यावरण संरक्षण के लिए मैन्ग्रोव(mangrove) के महत्व की वनस्पति होती है। इसकी वजह से केन्द्र सरकार के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की ओर से मिष्टी प्रोग्राम शुरू किया गया है। नवंबर, 2022 में इजिप्ट में आयोजित यूनाइटेड नेशन्स फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज के लिए 27वीं कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टी (सीओपी 27) के दौरान मैन्ग्रोव एलायन्स फॉर क्लाइमेट में भारत के जुड़ने के बाद मिष्टी प्रोजेक्ट शुरू किया गया है।

मिष्टी कार्यक्रम 5 वर्ष (वर्ष 2023-28) 9 समुद्र किनारे के राज्यों और 4 केन्द्र शासित प्रदेशों में करीब 540 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को हरा-भरा करेगा। इससे 4.5 मिलियन टन कार्बन के करीब कार्बन के सिंक के साथ करीब 22.8 मिलियन मानव दिन बनाएगा। प्राकृतिक पर्यटन और स्थानीय समुदाय के लिए आजीविका में भी सहायक साबित होगा। देश का सबसे लंबा समुद्र किनारे वाले गुजरात राज्य के मोरबी जिले के नवलखी समुद्र किनारे समुद्री जीव-सृष्टि और प्रवासी पक्षियों को बचाने के साथ समुद्र से भूमि कटाव रोकने के लिए मैन्ग्रोव के पौधे रोपे जाएंगे।

पर्यावरण के जानकारों के अनुसार इस पौधों से सुनामी, आंधी-तूफान आदि प्राकृतिक विपदाओं से भी बचाव होता है। मैन्ग्रोव का पौधा एक तरह से सुरक्षा कवच के रूप में प्रकृति का संरक्षण करता है। इसके अलावा यह बड़ी मात्रा में कार्बन का संग्रह कर पर्यावरण की रक्षा करता है। मैन्ग्रोव पौधे वाला गुजरात देश में दूसरे नंबर पर है। मिष्टी प्रोजेक्ट के संबंध में मोरबी वन विभाग की ओर से मालिया तहसील के ववाणिया गांव के कासमपीर दरगाह के पास नवलखी समुद्र-जंगी क्षेत्र में विश्व पर्यावरण के दिन सुबह 10 बजे से करीब 2 हेक्टेयर जमीन में मैन्ग्रोव के पौधे रोपे जाएंगे।

वैज्ञानिकों के अनुसार ये पौधे साइक्लोन की घटनाओं में कमी लाते ही हैं। साथ ही जमीन को पानी के कटाव से बचाने में भी सफल रहते हैं।

मैंग्रोव का महत्त्व
पारिस्थितिक स्थिरीकरण: पारिस्थितिक रूप से मैंग्रोव मिट्टी को उपजाऊ बनाने में एवं उसकी क्षमता को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण हैं।
ये चक्रवातों से सुरक्षा प्रदान करते हैं।
वे भूमि संचय को बढ़ावा देने, मिट्टी के किनारों को ठीक करने, तेज़ हवाओं , ज्वार और तरंग ऊर्जा को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
मैंग्रोव और ज्वार: जड़ों का घनत्व पेड़ों को ज्वार में आने वाली दैनिक वृद्धि और कमी को सहने की क्षमता देती है।
अधिकांश मैंग्रोव में दिन में कम से कम दो बार बाढ़ आ जाती है।
तटीय स्थिरीकरण: मैंग्रोव वन समुद्री तट को स्थिर करते हैं। यह तूफानी लहरों, धाराओं और ज्वार से समुद्री कटाव को कम करते हैं।
जल शोधन: मैंग्रोव अपवाह से पोषक तत्वों को अवशोषित करके पानी की गुणवत्ता में सुधार करते हैं अन्यथा हानिकारक शैवाल तटों पर उग सकते हैं।
कोरल रीफ और समुद्री घास दोनों ही पानी को साफ और स्वस्थ रखने के लिये मैंग्रोव वनों की जल शोधन क्षमता पर निर्भर करते हैं।
ब्लू कार्बन का भंडारण: समुद्री वातावरण का 2% से भी कम हिस्सा मैंग्रोव का है, लेकिन 10-15% कार्बन अवशोषित करते हैं।
एक बार जब पत्ते और पुराने पेड़ मर जाते हैं तो वे समुद्र तल पर गिर जाते हैं और संग्रहीत कार्बन को अपने साथ मिट्टी में दबा लेते हैं।
इस दबे हुए कार्बन को “ब्लू कार्बन” के रूप में जाना जाता है क्योंकि यह मैंग्रोव जंगलों, समुद्री घास और नमक के दलदल जैसे तटीय पारिस्थितिक तंत्र में पानी के नीचे जमा होता है।
जैव विविधता को बढ़ावा: मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र जैव विविधता को भी बढ़ावा देता है, जिसमें कुछ प्रजातियाँ मैंग्रोव वनों के लिये अद्वितीय हैं।
वे पक्षियों, मछलियों, अकशेरूकीय, स्तनधारियों और पौधों जैसे वन्यजीवों की एक विस्तृत श्रृंखला को आवास और आश्रय प्रदान करते हैं।

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