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गंगाधारा में ज्ञानगंगा बहाने पहुंचे शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण

चलथान से मंगल प्रस्थान, 11 कि.मी. का विहार कर आचार्यश्री पहुंचे गंगाधारा

– चलथान से मंगल प्रस्थान, 11 कि.मी. का विहार कर आचार्यश्री पहुंचे गंगाधारा

कषायों की मुक्ति से कल्याण संभव : आचार्यश्री महाश्रमण

-बारडोली पर बरसी गुरुकृपा, एक दिन पूर्व ही आचार्यश्री पहुंचे बारडोली

-आचार्यश्री के निर्णय से बारडोली में छाया नव उल्लास का वातावरण

सूरत। जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना संग गुजरात राज्य की उमस भरी गर्मी में भी निरंतर प्रवर्धमान हैं। जन-जन को अपने आशीष से लाभान्वित करते, शहरी व ग्रामीण क्षेत्र की जनता को भी मानवीय मूल्यों की प्रेरणा देते हुए शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी सोमवार को गंगाधारा में पहुंचे। सोमवार को प्रातःकाल की मंगल बेला में आचार्यश्री ने चलथान से मंगल प्रस्थान किया तो चलथानवासियों ने अपने आराध्य के प्रति कृतज्ञता के भाव अर्पित किए। दिन चढ़ने के साथ ही सूर्य का ताप भी बढ़ने लगा, लेकिन समता के साधक तो परकल्याण के लिए समता के साथ गतिमान थे। तपती गर्मी जहां लोग घरों से निकलना नहीं पसंद कर रहे, वहीं आचार्यश्री जनकल्याण के लिए सड़क मार्ग से गतिमान थे। लगभग ग्यारह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री गंगाधारा में स्थित श्री असेतरी मां लेउवा पाटीदार समाज सेवा ट्रस्ट के सांस्कृतिक भवन में पधारे।

आचार्यश्री ने भवन के मुख्य हॉल में आयोजित मंगल प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित जनता को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि जैन धर्म में तपस्या की बात बताई गई है। उसी प्रकार संवर और निर्जरा का भी बहुत महत्त्व होता है। संवर के माध्यम से आने वाले पाप कर्मों को अंतरात्मा तक पहुंचने से रोक दिया जाता है और निर्जरा के द्वारा पूर्वकृत पापकर्मों को क्षीण कर आत्मा के मूल स्वरूप को उजागर किया जा सकता है। जिस प्रकार किसी कुण्ड में गिरने वाले गंदे नाले को रोक दिया जाता है और कुण्ड में पूर्व में एकत्रित जल को बाहर निकाल दिया जाता है तो वह शुद्ध, निर्मल हो जाता है, उसी प्रकार संवर रूपी बांध से पापकर्मों को रोक दिया जाता है। आत्मा रूपी कुण्ड में अनैतिक और पाप कर्म न आएं, इसके लिए संवर की साधना करने का प्रयास करना चाहिए। निर्जरा के माध्यम से आत्मा में स्थित पूर्वकृत पापकर्मों का नाश कर आत्मा का शुद्ध स्वरूप प्रकट हो सकता है। कर्मों को तोड़ने के लिए तपस्या अनिवार्य होती है। इस बार सूरत शहर में अक्षय तृतीया के अवसर तपस्या का कीर्तिमान बना।

आदमी को सहन करने का प्रयास करना चाहिए। कष्टों को सहन करना भी निर्जरा का एक माध्यम हो सकता है। कषाय जितने मंद होंगे, आत्मा निर्मल होती जाती है। गुस्सा अहंकार लोभ, माया से मुक्त शुद्ध आत्मा मोक्षश्री का वरण कर सकती है। इसलिए आदमी को अपने जीवन में कषायों से मुक्त रहने का प्रयास करना चाहिए।

आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन से पूर्व बारडोली शहरवासियों को अपने सन्निकट आने का इंगित प्रदान किया तो बारडोलीवासी सहज ही अपने आराध्य के सम्मुख पहुंच गए। आचार्यश्री ने कुछ क्षण विचार करने के उपरान्त कहा कि बारडोली में स्थित तेरापंथ भवन में आज सायं ही पहुंचने का भाव है। ऐसी घोषणा सुनते ही बारडोलीवासियों के मन को मानों पंख लग गए। सभी अपने आराध्य की जय-जयकार कर उठे।

घोषणा के अनुसार आचार्यश्री सायं लगभग 4.40 पर गंगाधारा से बारडोली की ओर मंगल प्रस्थान किया। अस्ताचलगामी सूर्य की किरणों में कुछ तीक्ष्णता अभी भी बनी हुई थी, किन्तु वह क्रमशः मंद होती जा रही थी। आचार्यश्री लगभग 7 किलोमीटर का विहार कर बारडोली में स्थित तेरापंथ भवन में पधारे। बारडोलीवासियों ने अपने आराध्य का भावभीना अभिनंदन किया। जहां आचार्यश्री का रात्रिकालीन प्रवास हुआ। आचार्यश्री की इस कृपा को प्राप्त कर बारडोली का जन-जन का मन उत्फुल्ल बना हुआ था।

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