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कांग्रेस के पूर्व विधायक के ट्विट से गरमाया राजनीतिक माहौल

कांग्रेस के लिए दिन-रात काम करने वालों के महत्व नहीं मिलने की ओर इशारा

-सत्य शोधक कमिटी पर साधा निशाना, हार से सबक नहीं लेने की बात लिखी
-कांग्रेस के लिए दिन-रात काम करने वालों के महत्व नहीं मिलने की ओर इशारा

अहमदाबाद। गुजरात में कांग्रेस के नए अध्यक्ष शक्तिसिंह गोहिल की ताजपोशी के बाद संगठन में बदलाव को लेकर राजनीतिक बयानबाजी का दौर शुरू हो गया है।

गत विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की अब तक की सबसे करारी हार पर जहां निशाना साधा जा रहा है, वहीं इस हार से अब तक कुछ भी नहीं सीखने की बात को भी उछालने में नेता सक्रिय हो गए हैं। कांग्रेस के पूर्व विधायक ग्यासुद्दीन शेख ने दो ट्विट के जरिए कांग्रेस की स्थिति बयान करते हुए सबक सीखने की बात कही है।


कांग्रेस की विधानसभा की हार में ठिकरा पूर्व प्रदेश अध्यक्ष जगदीश ठाकोर पर फोड़ा गया। पार्टी की हार के बाद बनी सत्य शोधक समिति की रिपोर्ट में टिकट बांटने में गड़बड़ी का गंभीर आरोप लगा। इसके बाद प्रदेश अध्यक्ष को बदल दिया गया। बताया जा रहा है कि अब प्रदेश प्रभारी को भी बदलने की तैयारी की जा रही है। इस बीच पूर्व विधायक और कांग्रेस के अल्पसंख्यक समाज में रसूखदार नेता ग्यासुद्दीन शेख फ्रंट में आ गए हैं। उन्होंने अपने ट्विटर हैंडल से दो ट्विट कर इस चर्चा को और भी गरमा दिया। ग्यसुद्दीन शेख ने लिखा है कि वे और विधायक इमरान खेडावाला निवदेन करते हैं कि ऐसा महसूस हो रहा है कि गुजरात कांग्रेस ने इतिहास के सबसे बुरी हार के बावजूद कुछ सबक नहीं सीखा है। दूसरे ट्विट में उन्होंने लिखा कि बुरी हार के कारणों की तहकीकात करने वाली फैक्ट फाइंडिंग कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में यह नहीं कहा के दिन रात काम करन ेवालों को भी महत्व दिया जाए। उन्होंने इस ट्विट में शेख ने के.सी.वेणुगोपाल, कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खरगे राहुल गांधी, प्रियंका गांधी को टैग किया।


पिछले साल दिसंबर में सम्पन्न हुए गुजरात विधानसभा के चुनाव के पहले गुजरात प्रभारी और सह प्रभारी के काम पर कई सवाल उठाए गए थे। कांग्रेस के कई दिग्गज नेता ने पार्टी छोड़ते हुए भाजपा की सदस्यता ग्रहण की थी। चुनाव में करारी हार को लेकर कई मुद्दे अहम रहे। चुनाव प्रचार में उम्मीदवारों को पार्टी की ओर से जरूरी सपोर्ट का नहीं मिलना भी बड़ा कारण बताया गया। इसमें उम्मीदवारों ने स्टार प्रचारकों की मांग की थी, जो उन्हें नहीं मिले थे। बूथ समिति महज कागज पर थी। स्थानीय स्तर पर कार्यकर्ताओं की नाराजगी दूर करने या डैमेज कंट्रोल की कोशिश भी कागज पर रही। कई सीटों के टिकट चुनावी खर्च के प्रबंधन के लिए बेच दिए गए, जिसका उल्लेख सत्य शोधक कमिटी ने भी किया।

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