रामायण और महाभारत जैसे प्राचीन ग्रंथों में, समाज के अन्य वर्गों के साथ किन्नरों का उल्लेख भी पाया गया है. प्राचीन काल से, इस समाज को हमेशा समाज में एक अलग नजरिए से देखा गया है.
किन्नर समुदाय सामान्य समाज से अलग रहता है और इस कारण आम लोगों में उनके जीवन और रहन-सहन के बारे में जानने की जिज्ञासा बनी रहती है.
किन्नर की उत्पत्ति के पीछे कई मान्यताएं हैं. हिंदू पुराणों के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि किन्नरों की उत्पत्ति भगवान “ब्रह्मा” की छाया से हुई थी.
हिंदू पुराणों के अनुसार दूसरी मान्यता यह है कि किन्नरों की उत्पत्ति “अरिष्ट” और “कश्यप ऋषि” से हुई है.
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ऐसा माना जाता है कि “वीर्य” की अधिकता से “पुत्र” की प्राप्ति होती है और और “रज” यानि रक्त की अधिकता से बेटी पैदा होती है. यदि रक्त और वीर्य दोनों समान मात्रा में रहे तो “किन्नर” का जन्म होता है.
अगर किसी के घर में कोई बच्चा पैदा होता है और उस बच्चे के जननांग में कोई कमजोरी पाई जाती है तो उसे अक्सर किन्नरों को सौंप दिया जाता है.
किन्नर दो प्रकार के होते हैं, एक स्त्री-किन्नर और दूसरा पुरुष-किन्नर (हिजड़ा).
किन्नर समाज में आने वाले प्रत्येक नए किन्नर का स्वागत बहुत ही भव्य तरीके से किया जाता है. नए किन्नर का स्वागत करने के लिए एक भव्य कार्यक्रम आयोजित किया जाता है, जिसमें नृत्य और गायन के अलावा, एक दावत भी आयोजित की जाती है.
किन्नर समुदाय में “गुरु-शिष्य” की प्राचीन परंपरा आज भी जस की तस बनी हुई है.
किन्नर समुदाय अपने आप को मंगलमुखी मानता है, इसीलिए ये लोग बस विवाह, जन्म समारोह जैसे शुभ कार्यों में ही भाग लेते हैं. मृत्यु के बाद भी ये लोग शोक नहीं मनाते, बल्कि इस बात से प्रसन्न होते हैं कि उन्हें इस जन्म से छुटकारा मिल गया.