शास्त्रों में कुछ ऐसे त्योहार और दिन बताए हैं जब रोटी के सेवन की सख्त मनाही है। तीज-त्योहारों के मौकों पर हम तरह-तरह के पकवान बनाने में लग जाते हैं, मगर धर्म पुराण के अनुसार कुछ ऐसे पर्व हैं जब हमें रोटी बनाने और खाने से बचना चाहिए।
शीतलाष्टमी चैत्र महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। इस दिन शीतला माता की पूजा करने की परंपरा है। शीतला माता को इस दिन बासी भोजन का भोग लगाया जाता है। उन्हें भोग लगाने के बाद स्वयं भी बासी भोजन ही ग्रहण किया जाता है। इस दिन घर में नया भोजन नहीं पकाया जाता है और न ही रोटी बनाई जाती है।
हिंदू धर्म में शरद पूर्णिमा की रात को बहुत शुभ माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन आकाश से अमृत बरसता है। इस दिन शाम में खीर बनाकर रातभर चांद की रौशनी में रखा जाता है जिसे अगले दिन प्रसाद के रूप में सभी ग्रहण करते हैं। शरद पूर्णिमा के मौके पर भी रोटी बनाने की मनाही है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल सावन माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी को नाग पंचमी का त्योहार मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार, नाग पंचमी के दिन रसोईघर में रोटी नहीं बनानी चाहिए। दरअसल तवे को नाग के फन का प्रतिरूप माना जाता है इसलिए चूल्हे पर तवा चढ़ाने से मना किया जाता है। इस दिन पूरी और हलवा खाना शुभ माना जाता है।
ऐसी मान्यता है कि लक्ष्मी माता से जुड़े जितने भी त्योहार-पर्व आते हैं उसमें रोटी नहीं बनानी चाहिए। दिवाली के दिन भी रोटी बनाने से बचना चाहिए। ऐसे त्योहारों पर सात्विक भोजन बनाएं। पूरी, हलवा, मिठाई आदि का सेवन करें।
यदि घर में किसी व्यक्ति के मृत्यु हो जाती है तो उस दिन रोटी नहीं बनानी चाहिए। हिंदू धर्म में तेरहवीं संस्कार की रिवायत है। तेरहवीं संस्कार के बाद ही घर में रोटियां बनती हैं।