सच की तलाश करते-करते कहां खो जाती है ‘लॉस्ट’?

फिल्म ‘पिंक’ तो याद है न आपको? वही ‘पिंक’ जिसमें अमिताभ बच्चन और तापसी पन्नू वगैरह थे. उस फिल्म के निर्देशक अनिरुद्ध रॉय चौधरी की वह पहली हिन्दी फिल्म थी और खूब सराही भी गई थी.

अब बरसों बाद अनिरुद्ध अपनी यह दूसरी हिन्दी फिल्म लेकर आए हैं जो ओ.टी.टी. प्लेटफॉर्म जी-5 पर रिलीज हुई है.

कोलकाता शहर में नुक्कड़ नाटक करने वाला एक युवक अचानक गायब हो गया है. गायब होने से ठीक पहले वह अपनी दोस्त के घर से निकला था. इस दोस्त के साथ उसकी बहुत निकटता थी लेकिन कुछ दिन से उसकी यह दोस्त एक युवा मंत्री के दिए घर में रह रही थी, और लड़के को इस लड़की से दूर रहने की धमकियां भी मिल रही थीं.

अब इस मंत्री पर ही लड़के को गायब करवाने का शक है. मगर पुलिस का कहना है कि उस लड़के के नक्सलियों से संबंध हैं और वह खुद गायब होकर नक्सलियों से जा मिला है.

एक क्राइम रिपोर्टर इस मामले की छानबीन कर रही है, लेकिन उसे भी धमकियां मिलने लगती हैं. आखिर क्या है पूरे मामले का सच? लड़का सचमुच गायब हुआ, करवाया गया या कुछ और?

अनिरुद्ध रॉय चौधरी इस फिल्म में हमें राजनीति, पत्रकारिता, नक्सलवाद और रिश्तों की उस उलझी हुई दुनिया में ले जाते हैं जो है तो हमारे इर्दगिर्द ही, लेकिन हम उसे अनदेखा किए बस अपने में मशगूल रहना चाहते हैं.

यह फिल्म राजनीति की चालों और दबावों को दिखाती है. पत्रकारिता की नैतिकता और व्यापार की बात करती है. नक्सलवाद के आकर्षण और व्यर्थता पर नज़र डालती है.