Gujarat

गुजरात के इस मंदिर में होती है मछली के हड्डियों की पूजा, मत्स्य माता मंदिर की जानें क्या है कहानी?

पहले हुआ विरोध,चमत्कार के बाद होने लगी पूजा

भारत में कई सारे मंदिर है. कुछ इसलिए लोकप्रिय है क्योंकि वहां मांगी हुई मन्नत पूरी होती है. तो कुछ अपनी मान्यताओं की वजह से मशहूर है. भारत में देवी देवताओं के अलावा फिल्म स्टार्स जैसे रजनीकांत, अमिताभ बच्चन के मंदिरों के बारे में तो आपने सुना होगा. लेकिन क्या आप जानते है कि गुजरात के मत्स्य माता मंदिर (Matsya Mata Mandir) में देवी देवताओं या फिल्म स्टार्स की नहीं बल्कि मछली की हड्डियों की पूजा होती है. आईए जानते है इसके निर्माण की कहानी।

ये बात है गुजरात (Gujarat) के वलसाड तहसील (Valsad) के मगोद डुंगरी गांव (Magod Dungri Village). माना जाता है कि 300 साल पहले इस मंदिर का निर्माण इस गांव के ही प्रभु टंडेल नाम के निवासी ने कराया था. दरअसल, टंडेल को एक सपना आया था कि एक देवी मछली के रूप में गांव के समुद्री तट पर पहुंचते ही मर गई. सुबह जब प्रभु गांव वालो के साथ मिलकर, उस तट पर पहुंचता है तो उसे वहां असल में एक विशाल मछली मरी हुई मिलती है. ये व्हेल मछली (Whale Fish) होती है.

गांव वाले व्हेल मछली को देवी का स्वरूप मानकर इसके मंदिर का निर्माण शुरू कर देते है. मंदिर बनाते समय कुछ गांव वालो ने इसका विरोध किया. गांव वाले बताते है कि प्रभु ने मंदिर निर्माण पूरा होने तक इस मछली को जमीन में गाड़ दिया था. जब मंदिर बन गया तब उसकी मंदिर में प्रतिमा के स्थान पर स्थापना हुई. कुछ लोग देवी के मत्स्य अवतार पर फिर भी विश्वास नहीं करते थे. तभी उसी समय गांव में एक भयंकर बीमारी फैल गई. जब गांव वालो ने मत्स्य मंदिर में प्रार्थना की तब जाकर उस गांव की स्थिति बेहतर हो पाई. उसके बाद से ही गांव में इस मंदिर की मान्यता और बड़ गई. आलम ये है कि आज कोई भी मछुआरा मंदिर में प्रार्थना किए बगैर मछली पकड़ने पानी में नहीं उतरता है. उनका मानना है कि प्रार्थना न करने से उनके साथ कुछ अनहोनी होगी.

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